बातो की यादे

सुन्हेरा था ये सफ़र
लेकिन जाने कुछ कमी थी|
जैसे किसी को आना था,
मानो ये राहे भी तुम्हारा राह ताक रही थी|

कुछ तथा थोड़े बहुत,
जितने सारे लम्हे बिताये,
हर बार कुछ नया तुमको पाया|
ज़िन्दगी में तुम हमारे
और हम तुम्हारे एक अहम् पहलु रहे
किन्तु न जाने राहे बदल गयी|

खफ्हा होने का तुम्हारा कारण कभी जान ना पाए
हर वक़्त तुम्हें ढूढते रहे, लाखों सवाल ज़हन में लिए|
तुम्हे पाने की लालसा में,
हम दर-दर भटक्ते गए|

तो हर बार नकामियाबी से हार कर,
आखिर घर के एक कोने को अपनी दुनिया बना ली|
अगर कोई आता हमसे मिलने तो
बातो की यादों के सफ़र में लेकर उनको भी जाते|
अपनी नयी दुनिया भी बनाई हमने
तो उसमे भी तुमको शरीक कर लिया यादों के सहारे|

ज़िन्दगी को तुम्हारे बातो के यादों में हम जी लिए|
तुमसे अलग ना कर पाए हम अपने आप को तो क्या
एक पल का तुम्हारा साथ पा कर मनो अपनी ज़िन्दगी जी लिए|



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