रूह वही, जिस्म वही लेकिन बस एक साया सा
चलता जा रहा हूँ..
कुछ पाना है, कुछ कर दिखना है
इन अंजान राहो से गुजर कर
तभी तो यू
चलता जा रहा हूँ ......
राह आसान ना थी,
जग मे नाम ना था
सो यू एक नयी खोज मे
चलता जा रहा हूँ ...
साथ ना जाने यूही कितने छूटे
पर वक़्त दर वक़्त हाथ हज़ारो ने थामा
फिर अपनो के साथ के कारण
हमारी तितलियों सी इच्छाओं के लिए मैं
चलता जा रहा हूँ ......
परिणाम क्या होगा, इस चिंता मे चित ना लग जाए कही,
हम भी यू बेमानो के दुनिया मे शरीक ना हो जाए कही..
ताज बदनामी का ना होकर
ताज बदनामी का ना होकर
कामियाब नहीं तो कम से कम अच्छे
इंसान हो इसलिए
चलता जा रहा हूँ
ख्वाहिशें है लाखो और मंज़िल है दूर
पाना है बहुत किंतु राहे है धतुर
मानो तो यूँ अपने ही लिए ही
चलता जा रहा हूँ.........
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